मीजल्स रूबेला अभियान को लेकर जिला टीकाकरण अधिकारी ने किया निरीक्षण

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अधिकारी कर्मचारी रहे मौजूद, दिसंबर 2023 तक है निर्मूलन का लक्ष्य
सुसनेर। प्रदेश में मीजल्स-रुबेला (एमआर) के निर्मूलन के लिए अभियान चलाया जा रहा है। इसके लिए दिसंबर 2023 तक का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस अभियान की कार्य प्रगृति एवं अभियान के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के उद्धेश्य से मंगलवार को मुख्य खंड चिकित्सा अधिकारी सिविल अस्पताल सुसनेर डॉ.राजीव बरसेना मौज्ूदगी में जिला टीकाकरण अधिकारी एन.एस.परिहार के द्वारा सिविल अस्पताल सुसनेर का निरीक्षण किया। इसके तहत अस्पताल में मौजूद कोल्डचेन का निरीक्षण कर यहां की व्यवस्थाओं का जायजा लिया। बाद में ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचकर मंगलवार को चल रहे टीकाकरण कार्य का निरीक्षण किया तथा मौजूद फिल्ड स्टाफ को आवश्यक दिशा निर्देश दिए। साथ ही यूनिव पोर्टल पर में फिल्ड में ही शतप्रतिशत इन्ट्री पोर्टल पर किए जाने के निर्देश दिए गए। इस अवसर पर वेक्सीन कोल्ड मेनेजर आगर अविनाश गेहलोत,आरबीएसके कोडिनेटर मांगूसिंह पंवार, मेडीकल आफिसर डॉ.बी.बी.पाटीदार,डॉटा इंट्री आपरेटर शंकर बलवंतिया,बीपीएम दोलत मुजाल्दे,कोल्डचेन हेंडलर कुलदीप शुक्ला आदि मौजूद थे।
जिनको टीका नहीं लगा वे संक्रमित होंगे
विभाग की चिंता की प्रमुख वजह यह है कि उस बच्ची के संपर्क में आए ऐसे बच्चे और बड़े जिनको एमआर का टीका नहीं लगा है उनको मीजल्स-रुबेला का संक्रमण जरूर होगा।
रोकथाम का एकमात्र उपाय वैक्सीन
मीजल्स-रुबेला की रोकथाम का एकमात्र उपाय है वैक्सीन यानी टीकाकरण। इसके बच्चों को दो टीके लगाए जाते हैं। पहला नौ महीने की उम्र में तो दूसरा टीका 16 महीने की उम्र में लगता हैै।
यह होते हैं दुष्प्रभाव
यह एक तरह का वायरस है जो एक से दूसरे में फैलता है। ऐसे में एक व्यक्ति के संक्रमित होने पर ऐसे बच्चे और बड़े जिनको मीजल्स का टीका नहीं लगा है संक्रमित जरूर होते हैं।
विटामिन ए की कमी होने से नजर कमजोर हो जाती है। गंभीर स्थिति में आंखों में छाला पड़ने और आंखों की रोशनी जाने का खतरा रहता है।
दाने शरीर के ऊपर ही नहीं अंदर सांस की नली, आंत और फेफड़े में भी होते हैं। ऐसे में ठीक होने के बाद भी खाना पचाने की क्षमता घट जाती है। बार-बार निमोनिया की आशंका।
बुखार इतना तेज होता है कि मरीज के दिमाग पर चढ़ने की आशंका बनी रहती है। सिरदर्द, उल्टी, झटके और चक्कर आने की शिकायत।
बच्चा ऊपर से स्वस्थ दिखता है, लेकिन खाना नहीं पचने, दस्त और फेंफड़ों में संक्रमण के चलते धीरे-धीरे कुपोषित हो जाता है।

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